डॉ वर्गीज कुरियन

डॉ. वर्गीज़ कुरियन                                                                                                                                                                     तस्वीरें


डॉ. वर्गीज़ कुरियन 1965 से 1998 तक राष्‍ट्रीय डेरी विकास बोर्ड के संस्‍थापक अध्‍यक्ष थे । वे भारतीय श्‍वेत क्रांति के जनक थे, जिससे भारत को विश्‍व के सबसे बड़े दूध उत्‍पादक के रूप में उभरने में मदद मिली ।

60 के आखिरी दशक में डॉ. कुरियन ने ऑपरेशन फ्लड नाम से एक परियोजना की शुरूआत  की । 25 वर्षों तक चलने वाली परियोजना में रू. 1700 करोड़ के निवेश के माध्‍यम से, ऑपरेशन फ्लड ने प्रतिवर्ष रू. 55000 करोड़ मूल्‍य तक भारत में दूध उत्‍पादन को बढ़ाने में मदद दी जो कि विश्‍व के किसी अन्‍य विकास कार्यक्रम द्वारा प्राप्‍त उत्‍पादन अनुपात से मेल नही खाता है । ऑपरेशन फ्लड भारत के सबसे बड़े ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के रूप में उभरा तथा इससे डेरी विकास के संस्‍थागत, तकनीकी-आर्थिक, औद्योगिक एवं सामाजिक गतिविधियों के वृहत्‍तर आयाम खुले ।

डॉ. कुरियन के नवीन विचार तथा नेतृत्‍व से न केवल डेरी विकास के कार्यों में मदद मिली बल्कि अन्‍य क्षेत्रों जैसे-खाद्य तेलों, फलों एव सब्जियों के क्षेत्रों में भी मदद मिली ।

भारत सरकार के अनुरोध पर उन्‍होंने 90 के मध्‍य दशक में दिल्‍ली में फलों एवं सब्जियों की प्राप्ति एवं विपणन के लिए एक पॉयलट परियोजना की शुरूआत की । यह परियोजना विभिन्‍न राज्‍यों के फल एवं सब्‍जी के उत्‍पादकों त‍था दिल्‍ली के उपभोक्‍ताओं के मध्‍य सीधा संबंध उपलब्‍ध कराने पर केंद्रित थी ।

डॉ. कुरियन ने 1979 में ‘धारा’ लांच करके खाद्य तेलों के व्‍यवसाय में भी क्रांति ला दी, तिलहन उत्‍पादकों की सहकारी परियोजना से उत्‍पादकों एवं तेलों के उपभोक्‍ताओं के बीच एक सीधा संपर्क स्‍थापित हुआ जिससे तेल व्‍यापारियों और तेल सर्राफा की भूमिका घटी । इस परियोजना का मुख्‍य उद्देश्‍य तेल की कीमतों में स्थिरता लाना, खाद्य आयातों पर भारत की निर्भरता कम करना तथा उत्‍पादन में वृद्धि के लिए तिलहन उत्‍पादकों को प्रोत्‍साहित करना था ।

डॉ. कुरियन एक दूरदर्शी व्‍यक्ति थे तथा वे संस्‍थान निर्माता के रूप में विख्‍यात हुए । पूरे देश में स्‍थापित होने वाली सहकारिताओं को प्रबंधन प्रशिक्षण एवं अनुसंधान सहायता उपलब्‍ध कराने के लिए उन्‍होंने 1979 में आणंद में इंस्टीट्यूट  ऑफ रूरल मैनेजमेंट (इरमा), की स्‍थापना की । देश की राज्‍य सहकारी डेरी महासंघों के लिए एक राष्‍ट्रीय स्‍तर की संस्‍था उपलब्‍ध कराने के लिए उन्‍होंने 1988 में भारतीय राष्‍ट्रीय सहकारी डेरी महासंघ के पुनर्गठन को सहायता प्रदान  की । आणंद के विभिन्‍न संस्‍थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के बच्‍चों को गुणवत्‍तायुक्‍त स्‍कूली शिक्षा उपलब्‍ध कराने के लिए उन्‍होंने आनंदालय शिक्षा समिति की स्‍थापना की । 1994 में, उन्‍होंने विद्या डेरी स्‍थापित करने में मदद की ताकि डेरी प्रौद्योगिकी में स्‍नातक होने वाले विद्यार्थियों को डेरी संयंत्र प्रबंधन का व्‍यावहारिक अनुभव प्रदान किया जा सके । वे 1973 से 2006 तक गुजरात सहकारी दूध विपणन महासंघ के संस्‍थापक अध्‍यक्ष के रूप में भी कार्य कार्यरत रहे ।

संस्‍थाओं एवं व्‍यवस्‍थाओं को व्‍यवस्थित आकार देने में डॉ. कुरियन का मुख्‍य योगदान रहा है, जिससे लोगों ने स्‍वयं को विकसित किया, क्‍योंकि उनका मानना था कि लोगों के हाथों में विकास के उपकरण उपलब्‍ध करा कर मानव का विकास किया जा सकता है । उनका मानना था कि इस देश की सबसे श्रेष्‍ठ सम्‍पत्ति इस देश के लोग हैं, जिन्‍होंने इस प्रकार से अपना पूरा जीवन लोगों की शक्ति को काम मे लाने के कार्य में समर्पित किया जिनसे उनके व्‍यापक हितों को बढ़ावा मिले ।

डॉ. वर्गीज़ कुरियन ने अपने लब्‍ध-प्रतिष्‍ठ कार्यकाल के दौरान कई सम्‍मान एवं पुरस्‍कार प्राप्‍त किए जिनमें सामुदायिक नेतृत्‍व के लिए रोमन मेग्‍सेसे पुरस्‍कार, पद्मश्री पुरस्‍कार, पद्म भूषण पुरस्‍कार, कृषि रत्‍न पुरस्‍कार, वाटेलर शांति पुरस्‍कार, कार्नेगी फाउंडेशन पुरस्‍कार, विश्‍व खाद्य पुरस्‍कार विजेता, विश्‍व डेरीएक्‍सपो, मेडिशन, विस्‍कॉन्सिन, यूएसए द्वारा अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त व्‍यक्ति का सम्‍मान तथा पद्म विभूषण शामिल है ।